गोस्वामी तुलसीदास का ज्योतिषग्रन्थ
तुलसीदास जी के ज्योतिषीय ज्ञान का परिचय रामचरितमानस आदि ग्रन्थों से प्राप्त होता ही है, परन्तु उन्होंने ज्योतिष पर एक पृथक् ग्रन्थ 'रामाज्ञाप्रश्न' की रचना की। हुआ यह कि जब तुलसीदासजी बनारस में थे, तब वे गंगाराम ज्योतिषी के साथ सन्ध्या करने गंगातट पर जाया करते थे। एक दिन तुलसीदासजी जब संध्या के लिए गंगारामजी को लेने आए, तब उन्होंने बड़े उदास मन से कहा कि ''मैं आज आपके साथ गंगा किनारे नहीं जा सकूंगा।'' तुलसीदासजी को उनके उदास मन से चिन्ता हुई और उन्होंने उसका कारण पूछा, तब गंगारामजी ने बताया कि ''गढ़बारवंशीय नरेश के राजकुमार शिकार के लिए गए हुए हैं, परन्तु अभी तक लौटे नहीं हैं। समाचार यह भी मिला है, कि जो लोग शिकार के लिए गए थे, उनमें से एक को बाघ ने मार दिया है। राजा ने मुझे आज बुलाया था और मुझसे पूछा कि उनका पुत्र सकुशल है अथवा नहीं? तब मैंने उनसे एक दिन का समय मांगा है। राजा का कहना है कि उत्तर ठीक निकला तो पुरस्कार दिया जाएगा, अन्यथा प्राणदण्ड मिलेगा। मेरा ज्योतिष ज्ञान इतना नहीं है कि मैं निश्चयात्मक उत्तर दे सकूं। पता नहीं अब कल क्या होगा?''
तुलसीदासजी को गंगारामजी पर बड़ी दया आयी और उन्होंने थोड़ा विचार कर कहा ''आप चिन्ता न करें, रघुनाथजी सब मंगल करेंगे।''
तुलसीदासजी के इन वचनों को सुनकर गंगारामजी निश्चिन्त होकर संध्या करने गए। संध्या से लौटने पर तुलसीदासजी ने ज्योतिषग्रन्थ 'रामाज्ञाप्रश्न' की रचना की। उस समय उनके पास स्याही नहीं थी, फलतः कत्था घोलकर शरकण्डे की कलम से छह घण्टे में यह ग्रन्थ लिखकर गंगाराम जी को दे दिया।
दूसरे दिन ज्योतिषी गंगारामजी राजदरबार गए, वहॉं उन्होंने इस ग्रन्थ से देखकर बताया कि ''राजकुमार सकुशल हैं।''
जब तक राजकुमार घर लौटकर आया, तब तक गंगारामजी को बन्दी बनाकर रखा गया। राजकुमार के आने पर राजा ने गंगारामजी से क्षमा मॉंगी और बहुत धन-सम्पत्ति देकर ससम्मान विदा किया। वह धन लाकर गंगारामजी ने तुलसीदासजी के चरणों में रख दिया। तुलसीदासजी को उस धन से क्या करना था, परन्तु जब गंगारामजी ने बहुत आग्रह किया, तो उनका मान रखने के लिए दस हजार रुपए उसमें से लिए और उनसे हनूमान् जी के दस मंदिरों का निर्माण करवाया। उन मंदिरों में दक्षिणाभिमुख हनूमान् जी की मूर्तियॉं हैं।
रामाज्ञाप्रश्न में सात सर्ग हैं और प्रत्येक सर्ग सात-सात सप्तकों में विभक्त है और प्रत्येक सप्तक में सात-सात दोहे हैं। इनमें मुख्यतः रामचरितमानस की कथा का वर्णन किया गया है। इसी के आधार पर फल निकाला जाता है। ग्रन्थ में ही फल निकालने की विधि बताई गई है।
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