Saturday, 16 July 2016

वराहमिहिर की वह भविष्‍यवाणी ... ...

प्रसिद्ध ज्योतिषी वराहमिहिर महाराजा विक्रमादित्य के राज-ज्योतिषी थे। राजा के पुत्र की जन्मपत्रिका उनके द्वारा बनाई गई तथा अन्य ज्योतिषियों द्वारा भी ज्योतिषीय गणना की विविध पद्धतियों द्वारा जन्मपत्रिका बनाकर घोषणा की गई। सभी के द्वारा राजकुमार के लिए 18वाँ वर्ष संकटपूर्ण घोषित कर दिया गया। वराहमिहिर जो सूर्य भगवान् के भक्त थे, उन्हें वाक्सिद्धि प्राप्त थी, दिव्य दृष्टि भी दैवकृपा से उनके पास थी, के द्वारा निर्भीकतापूर्वक स्पष्टता के साथ फलादेश दिया गया कि राजकुमार की हत्या शूकर द्वारा निश्चित समय तथा दिन को होगी। उनके द्वारा यह भी कहा गया कि कोई भी उपाय इस मृत्यु से राजकुमार को बचाने में सहायक नहीं हो सकता। यह दुर्घटना अपरिवर्तनीय है। सभी प्रकार के सुरक्षा के उपाय किए जाने पर भी राजकुमार के प्राण नहीं बचाए जा सकते।
निश्चित दिन आने पर राजा द्वारा राजकुमार की सुरक्षा के लिए जितने उपाय सम्भव थे, किए गए। सभी जन इस भविष्यवाणी के विषय में जानने को उत्सुक थे। राजा अपने दरबार में थे। उन्होंने बार-बार वराहमिहिर से अपनी गणना के सम्बन्ध में पुनर्विचार करने के लिए कहा। राजा आश्वस्त थे कि इतनी सुरक्षा करने पर कोई भी जंगली शूकर राजकुमार के महल तक नहीं पहुँच सकता। राजकुमार की पल-पल की सूचना प्राप्त करने के लिए सेवक नियुक्त किए गए। राजकुमार अपने महल की सबसे ऊपर की मंजिल पर अपने मित्रों के साथ कक्ष में पूर्ण सुरक्षित थे। महल में पहरा इतना था कि किसी प्रकार भी परिन्दा पर तक नहीं मार सके। राजा द्वारा घोषणा की गई कि भविष्णवाणी सिद्ध होने पर राज्य का सर्वोच्च सम्मान वराहमिहिर को प्रदान किया जाएगा।
जैसे-जैसे समय निकट आता गया, सन्नाटा छाता गया। प्रजाजन बड़ी उत्सुकता के साथ सूचना की प्रतीक्षा में थे। राजा द्वारा बार-बार पूछने पर वराहमिहिर द्वारा कहा गया कि राजकुमार के द्वारा पूर्वजन्म के पापकर्म के परिणामस्वरूप जन्मकालीन ग्रह-स्थिति द्वारा सूचित यह दण्ड है। किसी भी उपाय से इस दण्ड को समाप्त नहीं किया जा सकता। इसे तो भोगना ही पड़ेगा।
थोड़ी-थोड़ी देर में लगातार राजा को राजकुमार की सुरक्षा के सम्बन्ध में सूचना देने का सैनिकों को आदेश था। जैसे ही निश्चित समय बीता, सैनिक ने राजा को राजकुमार के सुरक्षित होने की सूचना दी। कुछ समय पश्चात् दूसरा सैनिक भी वही समाचार लाया, परन्तु वराहमिहिर इस समाचार से सहमत नहीं थे। उन्होंने बड़े शान्त चित्त से महाराजा से कहा कि निश्चित समय पर राजकुमार की मृत्यु हो चुकी है। अच्छा यही होगा कि चलकर सत्यापन कर लिया जाए। इतने पर भी अन्य सैनिकों ने भी राजकुमार की कुशलता दी।
यहाँ राजा को फलादेश पर संशय हुआ। उन्होंने वराहमिहिर को पुनः गणना करने के लिए कहा, परन्तु मिहिर अपनी भविष्यवाणी पर अड़िग थे। उन्होंने साहस के साथ कहा कि राजकुमार की मृत्यु हो चुकी है। वह खून से लथपथ पड़े हुए हैं। सम्भवतः पहरेदारों तथा सहचरों का इस पर ध्यान नहीं गया है। उन्होंने महाराजा को प्रेरित किया कि वे स्वयं जाकर स्थिति का अवलोकन करें।
महाराजा स्वयं कुछ विशेष अधिकारियों सहित महल की सबसे ऊपरी मंजिल पर पहुँचे। राजकुमार के सहचर खेलने में पूर्ण रूप से तल्लीन थे। उन्हें महाराजा के आने का भी पता नहीं चला। पूछने पर ज्ञात हुआ कि राजकुमार उन्हीं के साथ खेल रहे थे। कुछ ही क्षण पूर्व खुले बरामदे में गए हैं।
सभी लोग बरामदे में पहुँचे। भयावह दृश्य देखकर सभी लोग काँप गए। राजकुमार खून से लथपथ मृत पड़े थे। देखा गया कि राजकुमार के शरीर पर शिल्पकार द्वारा निर्मित शूकर की मूर्ति के पंजे के घाव थे। राजकुमार के पूर्वजन्म के आधार ग्रहों द्वारा सूचित भविष्यफल कथन सत्य हुआ।
जब उक्त स्थान का निर्माण किया गया था, तब शिल्पकार ने एक स्तम्भ पर लोहे और चूने से बना एक शूकर राजमहल के शिखर पर लगाया था। किसी को भी यह ध्यान में नहीं आया कि यही एक दिन राजकुमार की मृत्यु का कारण बनेगा। राजकुमार को उसी निश्चित समय के लगभग व्याकुलता हुई और वह स्वच्छ वायु लेने बाहर गए। निश्चित समय हवा का तीव्र झोंका आया, जिसने खम्भे को दो हिस्सों में तोड़ दिया और शूकर सीधा राजकुमार की छाती पर जा गिरा। घाव इतना गहरा था कि अत्यधिक रक्तस्राव के कारण राजकुमार की मृत्यु हो गई।

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