बिम्बिसार की मृत्यु की वह भविष्यवाणी
इतिहास में ज्योतिष की अनेक भविष्यवाणियों का उल्लेख मिलता है, जो कि आश्चर्यजनक रूप से सत्य हुईं। उनसे एक ओर जहॉं ज्योतिर्विदों की महानता की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर भारत में ज्योतिष के विकसित स्वरूप के साक्ष्यों का भी पता लगता है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध भविष्यवाणी बिम्बिसार के सम्बन्ध में की गई थी। बिम्बिसार 544 ईस्वीपूर्व से 493 ईस्वीपूर्व तक मगध का राजा था। वह हर्यक वंश का संस्थापक एवं शक्तिशाली शासक था। उसने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया और मगध को एक साम्राज्य के रूप में विकसित किया, इसलिए उसे मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बिम्बिसार 15 वर्ष की आयु में ही राजा बन गया था और उसने लगभग 52 वर्ष राज्य किया।
बिम्बिसार की पत्नी महाकोशला जब गर्भवती हुई, तो बिम्बिसार बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपने पुत्र के बारे में कई तरह के सपने देखना शुरू कर दिया। इसी बीच उसे एक युद्ध अभियान में जाना पड़ा। उसके पीछे से महाकोशला ने एक शिशु को जन्म दिया। उस शिशु के बारे में यह भविष्यवाणी की गई कि वह अपने पिता की हत्या करेगा। इसे सुनकर महाकोशला को बड़ा दुःख हुआ और उसने नियति को बदलने का प्रयास किया। नवजात शिशु को उसने जंगल में छुड़वा दिया। संयोग से कुछ समय बाद ही बिम्बिसार का वहॉं होकर लौटना हुआ, तो उसने छोटे बालक को देखा और उसे अपने साथ यह सोचकर ले लिया कि यह भी राजकुमार के साथ बड़ा होगा और उसके साथ खेलता रहेगा। बिम्बिसार जब वापस अपने महल में पहुंचा तो उसे ज्ञात हुआ कि रानी महाकोशला ने पुत्र को जन्म दिया है। बिम्बिसार महाकोशला के भवन में पहुंचा और अपने पुत्र को देखने की मंशा जताई, तब महाकोशला ने उसे किसी तरह कुछ दिनों तक के लिए उसे टाल दिया। बाद में उसने कहा कि उसने जन्म के बाद ही नवजात शिशु को जंगल में छुड़वा दिया था, क्योंकि उसके बारे में भविष्यवाणी की गई थी कि वह आपकी हत्या करेगा। बिम्बिसार को दुःख तो हुआ, परन्तु महाकोशला के त्याग पर गर्व पर भी हुआ। समय व्यतीत होने लगा, उधर जंगल से लाया बालक भी बड़ा होने लगा। उसका नाम अजातशत्रु रखा गया। बिम्बिसार ने उसकी शिक्षा-दीक्षा राजकुमारों जैसी करवायी। बाद में वह बिम्बिसार के साथ युद्ध अभियानों में भी भाग लेने लगा। अजातशत्रु के नेतृत्व में मगध ने अंग राज्य जीता था और उसके कहने पर ही बिम्बिसार ने उसे अंगराज्य का राज्यपाल बना दिया। बाद में अजातशत्रु की महत्वाकांक्षाऍं बढ़ने लगीं। उसका फायदा देवदत्त ने उठाया। देवदत्त बिम्बिसार की बौद्धधर्म को प्रश्रय देने की नीति से उसका विरोधी था। अजातशत्रु ने देवदत्त के साथ मिलकर पिता की हत्या का षड्यंत्र रचा, परन्तु वह भेद खुल गया। बिम्बिसार को जब यह पता लगा कि अजातशत्रु राजा बनना चाहता है, तो उसने स्वयं ही राजपाट त्याग दिया और अजातशत्रु राजा बन गया, परन्तु बिम्बिसार की नियति, तो पुत्र के द्वारा दर्दनाक मृत्यु की थी। इसलिए देवदत्त के उकसावे पर बिम्बिसार को बन्दी बना लिया गया और कारागार में उसपर कई प्रकार के अत्याचार किए गए तथा उसे भोजन नहीं दिया गया। अन्त समय में बिम्बिसार के पैरों को काटकर उसके घावों में नमक और सिरका डलवाया गया। घावों को कोयलों से जलाया भी गया। ऐसे अत्याचार से बिम्बिसार की दर्दनाक मृत्यु हुई। नियति को बदला नहीं जा सका।
इतिहास में ज्योतिष की अनेक भविष्यवाणियों का उल्लेख मिलता है, जो कि आश्चर्यजनक रूप से सत्य हुईं। उनसे एक ओर जहॉं ज्योतिर्विदों की महानता की जानकारी मिलती है, वहीं दूसरी ओर भारत में ज्योतिष के विकसित स्वरूप के साक्ष्यों का भी पता लगता है। ऐसी ही एक प्रसिद्ध भविष्यवाणी बिम्बिसार के सम्बन्ध में की गई थी। बिम्बिसार 544 ईस्वीपूर्व से 493 ईस्वीपूर्व तक मगध का राजा था। वह हर्यक वंश का संस्थापक एवं शक्तिशाली शासक था। उसने गिरिव्रज को अपनी राजधानी बनाया और मगध को एक साम्राज्य के रूप में विकसित किया, इसलिए उसे मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक माना जाता है। बिम्बिसार 15 वर्ष की आयु में ही राजा बन गया था और उसने लगभग 52 वर्ष राज्य किया।
बिम्बिसार की पत्नी महाकोशला जब गर्भवती हुई, तो बिम्बिसार बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने अपने पुत्र के बारे में कई तरह के सपने देखना शुरू कर दिया। इसी बीच उसे एक युद्ध अभियान में जाना पड़ा। उसके पीछे से महाकोशला ने एक शिशु को जन्म दिया। उस शिशु के बारे में यह भविष्यवाणी की गई कि वह अपने पिता की हत्या करेगा। इसे सुनकर महाकोशला को बड़ा दुःख हुआ और उसने नियति को बदलने का प्रयास किया। नवजात शिशु को उसने जंगल में छुड़वा दिया। संयोग से कुछ समय बाद ही बिम्बिसार का वहॉं होकर लौटना हुआ, तो उसने छोटे बालक को देखा और उसे अपने साथ यह सोचकर ले लिया कि यह भी राजकुमार के साथ बड़ा होगा और उसके साथ खेलता रहेगा। बिम्बिसार जब वापस अपने महल में पहुंचा तो उसे ज्ञात हुआ कि रानी महाकोशला ने पुत्र को जन्म दिया है। बिम्बिसार महाकोशला के भवन में पहुंचा और अपने पुत्र को देखने की मंशा जताई, तब महाकोशला ने उसे किसी तरह कुछ दिनों तक के लिए उसे टाल दिया। बाद में उसने कहा कि उसने जन्म के बाद ही नवजात शिशु को जंगल में छुड़वा दिया था, क्योंकि उसके बारे में भविष्यवाणी की गई थी कि वह आपकी हत्या करेगा। बिम्बिसार को दुःख तो हुआ, परन्तु महाकोशला के त्याग पर गर्व पर भी हुआ। समय व्यतीत होने लगा, उधर जंगल से लाया बालक भी बड़ा होने लगा। उसका नाम अजातशत्रु रखा गया। बिम्बिसार ने उसकी शिक्षा-दीक्षा राजकुमारों जैसी करवायी। बाद में वह बिम्बिसार के साथ युद्ध अभियानों में भी भाग लेने लगा। अजातशत्रु के नेतृत्व में मगध ने अंग राज्य जीता था और उसके कहने पर ही बिम्बिसार ने उसे अंगराज्य का राज्यपाल बना दिया। बाद में अजातशत्रु की महत्वाकांक्षाऍं बढ़ने लगीं। उसका फायदा देवदत्त ने उठाया। देवदत्त बिम्बिसार की बौद्धधर्म को प्रश्रय देने की नीति से उसका विरोधी था। अजातशत्रु ने देवदत्त के साथ मिलकर पिता की हत्या का षड्यंत्र रचा, परन्तु वह भेद खुल गया। बिम्बिसार को जब यह पता लगा कि अजातशत्रु राजा बनना चाहता है, तो उसने स्वयं ही राजपाट त्याग दिया और अजातशत्रु राजा बन गया, परन्तु बिम्बिसार की नियति, तो पुत्र के द्वारा दर्दनाक मृत्यु की थी। इसलिए देवदत्त के उकसावे पर बिम्बिसार को बन्दी बना लिया गया और कारागार में उसपर कई प्रकार के अत्याचार किए गए तथा उसे भोजन नहीं दिया गया। अन्त समय में बिम्बिसार के पैरों को काटकर उसके घावों में नमक और सिरका डलवाया गया। घावों को कोयलों से जलाया भी गया। ऐसे अत्याचार से बिम्बिसार की दर्दनाक मृत्यु हुई। नियति को बदला नहीं जा सका।
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