ज्योतिर्विद्, जो मुख देकर कुण्डली बनाते!
शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने कोल्हापुर के बाबाजी काशीनाथ पटवर्धन (प्रसिद्ध नाम महाड़कर) का उल्लेख किया है। वे व्यक्ति का मुख देकर कुण्डली बना लेते थे। उनका अभ्यास इतना अच्छा था कि जैसे ही उनके सामने कोई व्यक्ति पड़ता, वैसे ही वे उसकी कुण्डली बना लेते। सामान्यतः वे मुख के आधार पर ही यह कर लेते थे, परन्तु कभी कभी जिह्वा और हथेली भी देखते थे। ये केवल जन्मकालीन लग्न और ग्रहों की राशियॉं ही नहीं लिखते, वरन् उनके अंश भी बताते थे। शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने उनका यह हुनर प्रत्यक्ष अनुभव किया। वे आश्चर्य से लिखते हैं कि राशियों के अंश बताना विशेष बात है। पटवर्धन को पिता के शरीर लक्षणों के द्वारा पुत्र की जन्मकुण्डली बनाते हुए भी देखा गया। एक बार नारायण भाई दांडेकर की मुखाकृति देखकर उन्होंने 15-20 मिनट में उनके गणेश नामक पुत्र की प्रायः सभी ग्रहों से युक्त जन्मकुण्डली दीक्षित जी के सामने बनायी। यह विधि किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलती। इस प्रकार की विद्याओं के जानकार अब भी होंगे, परन्तु किसी का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हुआ। ऐसे प्रतिभावान् ज्योतिर्विदों को लोगों के सामने लाने की आवश्यकता है।
शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने कोल्हापुर के बाबाजी काशीनाथ पटवर्धन (प्रसिद्ध नाम महाड़कर) का उल्लेख किया है। वे व्यक्ति का मुख देकर कुण्डली बना लेते थे। उनका अभ्यास इतना अच्छा था कि जैसे ही उनके सामने कोई व्यक्ति पड़ता, वैसे ही वे उसकी कुण्डली बना लेते। सामान्यतः वे मुख के आधार पर ही यह कर लेते थे, परन्तु कभी कभी जिह्वा और हथेली भी देखते थे। ये केवल जन्मकालीन लग्न और ग्रहों की राशियॉं ही नहीं लिखते, वरन् उनके अंश भी बताते थे। शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने उनका यह हुनर प्रत्यक्ष अनुभव किया। वे आश्चर्य से लिखते हैं कि राशियों के अंश बताना विशेष बात है। पटवर्धन को पिता के शरीर लक्षणों के द्वारा पुत्र की जन्मकुण्डली बनाते हुए भी देखा गया। एक बार नारायण भाई दांडेकर की मुखाकृति देखकर उन्होंने 15-20 मिनट में उनके गणेश नामक पुत्र की प्रायः सभी ग्रहों से युक्त जन्मकुण्डली दीक्षित जी के सामने बनायी। यह विधि किसी भी ग्रन्थ में नहीं मिलती। इस प्रकार की विद्याओं के जानकार अब भी होंगे, परन्तु किसी का प्रत्यक्ष अनुभव नहीं हुआ। ऐसे प्रतिभावान् ज्योतिर्विदों को लोगों के सामने लाने की आवश्यकता है।
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